कल प्रसून जोशी कि 26 /11 मुंबई बम धमाको पर लिखी एक कविता पढी! हकीकत को बयान करती ये पंक्तिया इशारा करती है कि अब समय आ गया है ठोस फैसले लेने का, न कि दर्द को चुपचाप सहते रहने का, क्योंकी आतंक को चुपचाप सहते रहना भी तो एक गुनाह है.
इस बार नहीं
इस बार जब वो छोटी सी बच्ची मेरे पास अपनी खरोंच ले कर आएगी
मैं उसे फू फू कर नहीं बहलाऊँगा
पनपने दूँगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखा देखूँगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूँगा, उतरने दूँगा अन्दर गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं न मरहम लगाऊँगा
न ही उठाऊँगा रुई के फाहे
और न ही कहूँगा की तुम आँखें बंद कर लो, गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूँ
देखने दूँगा सबको हम सबको खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझने देखूँगा, छटपटाहट देखूँगा
नहीं दौडूंगा उलझी ड़ोर लपेटने
उलझने दूँगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊँगा औजार
नहीं करूंगा फिर से एक नयी शुरुआत
नहीं बनूँगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूँगा ज़िन्दगी को आसानी से पटरी पर
उतारने दूँगा उसे कीचड मैं, टेढे मेढे रास्तों पे
नहीं सूखने दूँगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूँगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूँगा उसे इतना लाचार
कि पान की पीक और खून का फर्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
प्रसून जोशी
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सच है जितना गुनाह करने वाला गुनाहगार है उतना गुनाह सहने वाला भी ......
ReplyDeletevo subah kabhi to aayegi...!!
ReplyDeleteदिल नाउम्मीद तो नहीं , नाकाम ही तो है
ReplyDeleteलम्बी है ग़म की शाम , मगर शाम ही तो है
यह कविता उस भयानक हादसे के तुरत बाद ही आई थी, जो उन्होंने लाइव टीवी पर पढी थी...
ReplyDeletego through our new post.. a case very close to our heart!!
ReplyDeleteवाकई ...आज हमें सावधान रहकर आतंकवाद का मुकाबला करने की जरुरत है .
ReplyDeletein aatankvadio ko unhiki bhasha me jawab dena chahiye..kavita sun ne sunane se kya hoga?
ReplyDeleteJai Hind.
আপনার ব্লগ দেখলাম। খুব সুন্দর। প্রসূন যোশীর এই কবিতাটা আমি আগে শুনেছি। এবং আমার প্রিয় কয়েকজন লেখকদের মধ্যে উনি একজন। আমি হিন্দি লিখতে পারি না। কিন্তু পড়তে পারি। আপনার জন্য শুভেচ্ছা রইলো। ভালো থাকবেন।
ReplyDeleteis kavita ko tv pe padhte hue dekha hai maine unhe..bahut marmsparshi hai ... sach kaha aapne faisla lena hi padega..thanku fa sharing
ReplyDeleteआतंकवाद ...आतंकवाद की रोकथाम के लिए पूरे देश और समाज को जगाना होगा। और इस में आप की हमारी सभी की भूंमिका है।
ReplyDeleteइस बार घावों को देखना है
ReplyDeleteगौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है .
randomly landed here...but u hd choosen a good poem...is baar nhi.....
बस बहुत हो चुकी, शान्ति तत्व की चर्चा यहाँ पर,
ReplyDeleteहो चुकी अती ही, अहिंसा तत्व की चर्चा यहाँ पर,
यह मधुर सिद्धांत देश की, पर कर न पाए,
उट्ठो नवयुवकों, आज का युगधर्म शक्ति उपासना है!!
Adapted from a calendar, Maatrivandana, from the days of Kargil war. I loved this quote and still remember it.
Is baar nahi, this poem as narrated by Amitabh Bachhan on TV, became more touchy with the clips and images that played with it. It could make any blood to boil.
Regards
Blasphemous Aesthete