कल रात अनमने से चैनल सर्फिंग करते हुए अचानक गुलज़ार साब लोकसभा टीवी पर नज़र आ गए. उनको देखकर अंगुलियाँ अपने आप ही रिमोट पर ठहर गयी और मैं मंत्रमुग्ध होकर मृणाल पाण्डेय और उनकी बातचीत देखती रही. शोर शराबे, गाली गलौच वाले रिअल्टी शोज़ से और सड़ी-गली ख़बरों की दुनिया से दूर उनकी नज्मों को उनकी आवाज़ में सुनना किसी सौगात से कम नहीं. गुलज़ार साब की एक नज़्म जो आज के दौर में बहुत मौजूं है..पेश-ऐ-खिदमत है
किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से ताकती हैं
महीनो अब मुलाक़ात नहीं होती
जो शामें इनकी सोहबत में कटा करती थीं.. अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कंप्यूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
ज़बान पर ज़ायका आता था जो इन सफ़े पलटने का
अब ऊँगली क्लिक करने से बस
इक झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो ज़ाती राबता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में रखते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बना कर
नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जभी से
खुदा ने चाह तो वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा
वो शायद अब नहीं होंगे!
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"किताबो में चिडिया चहचहाती है
ReplyDeleteकिताबो में खेतिया लहलहाती है
किताबो में झरने गुनगुनाते है
परियो के किस्से सुनाते है
किताबो में रोकेट का राज है
किताबो में साइंस की आवाज है
किताबो में ज्ञान की भरमार है
किताबो का कितना बड़ा संसार है
क्या तुम इस संसार में नही चाहोगे?
किताबे कुछ कहना चाहती है
तुम्हारे पास रहना चाहती है
" सफ़दर हाश्मी "
शुक्रिया ऋतु जी. गुलज़ार साहब का लिखा पढ़वाने के लिए...बहुत बढ़िया.
ReplyDeletebahut sundar rachana hai mam,
ReplyDeleteyah nazm maine sagar me ek book shop me padha thaa. dobaaraa padhkar bahut achcha laga.
thanks prabal
ReplyDeleteउम्मीद है आपने सूरत पुस्तक मेला जरूर देखा होगा । आपसे अनुरोध है कि कृपया उसका उल्लेख अपने ब्लॉग मे जरूर करें ।
ReplyDeleteऋतु जी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद! बतलाने के लिये.मगर मुझे अफ़सोस है कि इतना सुन्दर कार्यक्रम मैं ना देख पाया .