घर से दूर चले जाने पर आती है घर की याद
माँ के आँचल की छाँव में गुज़ारे वो पल
और पापा का वो अनुशासित लाड प्यार
वो सुबह सुबह मंदिर से आती आरती की आवाज़
और नुक्कड़ वाली मस्जिद में होने वाली रोज़ की अज़ान
पड़ोस वाली चाची के चूल्हे से उठती रोटियों की महक
या हलवाई काका के खस्ते में पुदीने की चटनी का स्वाद
बाबा का गेट से चिल्लाना की ऑटो वाला आया
और बच्चों का रोना की आज फिर स्कूल नहीं जाना
सामने वाली आंटी का छत पर खुद को मेंटेन करने का प्रयास
और उसी समय शर्मा अंकल का अपनी मुंडेर पर योग का अभियान
तिवारी अंकल का तेज़ी से तैयार होकर ऑफिस जाना
और पीछे से आंटी का हडबडाते हुए टिफीन लेकर आना
कुछ ऐसी ही हैपेनिंग सुबह में अलसाये से हमारा उठना
पेपर और चाय का कप हाथ में लेकर बालकनी में धूप सेकना
आह...याद आती है वो सुबह जो तब हुआ करती थी रोज़ का किस्सा
वो घर जो पीछे छोड़ आये हम और बन गए दुनिया की इस भेड़-चाल का हिस्सा
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Longing
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i simply loved the feel of this piece...the quintessential mundane morning being elevated to bring back fond memories...keep delighting :)
ReplyDeletethanks medha!!!
ReplyDeleteआपने बहुत खूबी से अपने ' नॉस्टेल्जिया' अनुभव को कविता में प्रयोग किया .
ReplyDeleteबधाई !
thats true....Everyone who is not in their place of birth or the place they call "HOME", sometimes has those moments when you REALLY miss home.
ReplyDeleteEast or west,
Home is the best.
..that reminds me of my home .. indeed,we miss our home .
ReplyDeleteआपने तो घर की यादें ताजा कर दी ... बहुत खूबसूरत और मार्मिक रचना है ।
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