Wednesday, December 23, 2009

किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से

कल रात अनमने से चैनल सर्फिंग करते हुए अचानक गुलज़ार साब लोकसभा टीवी पर नज़र आ गए. उनको देखकर अंगुलियाँ अपने आप ही रिमोट पर ठहर गयी और मैं मंत्रमुग्ध होकर मृणाल पाण्डेय और उनकी बातचीत देखती रही. शोर शराबे, गाली गलौच वाले रिअल्टी शोज़ से और सड़ी-गली ख़बरों की दुनिया से दूर उनकी नज्मों को उनकी आवाज़ में सुनना किसी सौगात से कम नहीं. गुलज़ार साब की एक नज़्म जो आज के दौर में बहुत मौजूं है..पेश-ऐ-खिदमत है

किताबें झांकती हैं बंद अलमारी के शीशों से
बड़ी हसरत से ताकती हैं
महीनो अब मुलाक़ात नहीं होती
जो शामें इनकी सोहबत में कटा करती थीं.. अब अक्सर
गुज़र जाती हैं कंप्यूटर के पर्दों पर
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें
ज़बान पर ज़ायका आता था जो इन सफ़े पलटने का
अब ऊँगली क्लिक करने से बस
इक झपकी गुज़रती है
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर
किताबों से जो ज़ाती राबता था कट गया है
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में रखते थे
कभी घुटनों को अपने रहल की सूरत बना कर
नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जभी से
खुदा ने चाह तो वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा बाद में भी
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा
वो शायद अब नहीं होंगे!

Wednesday, December 9, 2009

तुम

मेरे जीवन के साथी तुम
नयी राह के पथगामी तुम
तुम से ही मैं सम्पूर्ण
तुम बिन मेरी ज़िन्दगी अपूर्ण
जब नहीं होते हो तुम पास
इतनी शिद्दत से आती है तुम्हारी याद
तुम्हारी छेड़खानीयां गुदगुदाती हैं मुझे
तुम्हारी मुस्कराहट लुभाती है मुझे
आज तुमसे एक ही वचन की है आस
जब भी जाएँ, जाएँ दोनों साथ
क्योंकि जन्म मरण के परे है हमारा साथ

Tuesday, December 8, 2009

घर से दूर चले जाने पर आती है घर की याद

घर से दूर चले जाने पर आती है घर की याद
माँ के आँचल की छाँव में गुज़ारे वो पल
और पापा का वो अनुशासित लाड प्यार
वो सुबह सुबह मंदिर से आती आरती की आवाज़
और नुक्कड़ वाली मस्जिद में होने वाली रोज़ की अज़ान
पड़ोस वाली चाची के चूल्हे से उठती रोटियों की महक
या हलवाई काका के खस्ते में पुदीने की चटनी का स्वाद
बाबा का गेट से चिल्लाना की ऑटो वाला आया
और बच्चों का रोना की आज फिर स्कूल नहीं जाना
सामने वाली आंटी का छत पर खुद को मेंटेन करने का प्रयास
और उसी समय शर्मा अंकल का अपनी मुंडेर पर योग का अभियान
तिवारी अंकल का तेज़ी से तैयार होकर ऑफिस जाना
और पीछे से आंटी का हडबडाते हुए टिफीन लेकर आना
कुछ ऐसी ही हैपेनिंग सुबह में अलसाये से हमारा उठना
पेपर और चाय का कप हाथ में लेकर बालकनी में धूप सेकना
आह...याद आती है वो सुबह जो तब हुआ करती थी रोज़ का किस्सा
वो घर जो पीछे छोड़ आये हम और बन गए दुनिया की इस भेड़-चाल का हिस्सा

Longing

From dream to dramatic, that's how I will describe my 2016. It was a glorious, adventurous, full of uncertainties and a transitional y...