Tuesday, August 30, 2011

तलाश

सागर किनारे
रेत की नम भूमि पर
नंगे पाँव चलते, शंख बीनते, घरोंदे बनाते,
चला जाता हूँ मैं,
मैं उस क्षितिझ की खोज में, जो शायद ही मुझे कभी छू पायेगा,
या मैं उसे पा लूँगा, हाथ बढाकर,
हाँ, इससे ज्यादा मैं क्या कर सकता हूँ.
ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर रुकता रहा हूँ,
कभी थका, कभी किसी का हाथ थामा, पकड़ा
कुछ दूर जाकर छोड़ दिया...
पर ख़त्म न हुई मेरी तलाश
क्या कभी बुझेगी ये प्यास?
शायद मेरे जाने के बाद !

Thursday, May 5, 2011

माँ

माँ को समर्पित दो रचनाए....

बेसन की सोंधी रोटी पर-निदा फ़ाज़ली

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

माँ के लिए सम्भव नहीं होगी मुझसे कविता-चंद्रकांत देवताले

अमर चिऊँटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है
माँ वहाँ हर रोज़ चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती है
मैं जब भी सोचना शुरू करता हूँ
यह किस तरह होता होगा
घट्टी पीसने की आवाज़ मुझे घेरने लगती है
और मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊँघने लगता हूँ
जब कोई भी माँ छिलके उतार कर
चने, मूँगफली या मटर के दाने नन्हीं हथेलियों पर रख देती है
तब मेरे हाथ अपनी जगह पर थरथराने लगते हैं
माँ ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिए
देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे
और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया
मैंने धरती पर कविता लिखी है
चन्द्रमा को गिटार में बदला है
समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूँगा
माँ पर नहीं लिख सकता कविता !

Tuesday, April 26, 2011

उड़ जायेगा हंस अकेला

उड़ जायेगा उड़ जायेगा
उड़ जायेगा हंस अकेला
जग दर्शन का मेला
जैसे पात गिरे तरुवर पे
मिलना बहुत दुहेला
ना जाने किधर गिरेगा
ना जानूं किधर गिरेगा
गगया पवन का रेला
जब होवे उमर पूरी
जब छूटे गा हुकुम हुज़ूरी
यम् के दूत बड़े मज़बूत
यम् से पडा झमेला
दास कबीर हर के गुण गावे
वाह हर को पारण पावे
गुरु की करनी गुरु जायेगा
चेले की करनी चेला

Longing

From dream to dramatic, that's how I will describe my 2016. It was a glorious, adventurous, full of uncertainties and a transitional y...